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पुराने दिन…काश वापिस ला सकें…

पुराने दिन…काश वापिस ला सकें…

पुराने दिन…काश वापिस ला सकें। प्रकृति को हटा कर नही…बल्कि उसके साथ जी सकें।। काँच के शीशे के भीतर बैठ कर क्या महसूस कर पाते होंगे बारिश कि भीनी भीनी ख़ुशबू को। क्या कभी गीली ज़मीन पर लेट कर छुआ है इन बूँदो को अपनी पलकों से?….रूह छू जाती हैं।। कुछ ऐसी ही...